Sumitranandan Pant Biography in Hindi, सुमित्रानन्दन पन्त जी का जीवन परिचय

हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभ हैं। उनमें से एक हैं सुमित्रानन्दन पन्त इनकी विशेष रचनाओं को देखते हुए इन्हें पद्मभूषण, ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार द्वारा पुरस्कृत भी किया गया था।

Sumitranandan Pant Biography in Hindi, सुमित्रानन्दन पन्त जी का जीवन परिचय
Sumitranandan Pant Biography in Hindi

सुमित्रानन्दन पन्त जी का संक्षिप्त जीवन परिचय

पूरा नाम सुमित्रानन्दन पन्त
जन्म 20 मई 1900 ई.
जन्म स्थान कौसानी, अल्मोड़ा जिला, उत्तर-पश्चिम प्रांत, भारत
मृत्यु 28 दिसंबर 1977 ई.
मृत्यु स्थान इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
कर्मभूमि उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएं कला और बूढ़ा चांद, लोकायतन, चिदंबरा आदि।
विषय कविता, कहानी, उपन्यास और नाटक
भाषा हिंदी, संस्कृत
नागरिकता भारतीय
लेखन शैली विचार प्रधान, व्याख्यात्मक, भावनात्मक आदि।
उपाधि पद्मभूषण
प्रसिद्धि लेखक तथा कवि
पुरस्कार पद्मभूषण, ज्ञानपीठ पुरस्कार

सुमित्रानन्दन पन्त जी का जीवन परिचय

जीवन परिचय

प्रकृति के सुकुमार कवि पं० सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म 20 मई, 1900 ई० को प्रकृति की सुरम्य क्रीड़ास्थली कूर्मांचल प्रदेश के अन्तर्गत अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम श्री गंगादत्त पन्त तथा माता का नाम श्रीमती सरस्वती देवी था।

सुमित्रानन्दन पन्त जी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की ही पाठशाला में हुई। इसके पश्चात् ये अल्मोड़ा गवर्नमेण्ट हाईस्कूल में प्रविष्ट हुए। तत्पश्चात् काशी के जयनारायण हाईस्कूल से इन्होंने स्कूल लीविंग की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1916 ई० में आपने प्रयाग के म्योर सेण्ट्रल कॉलेज से एफ०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके बाद ये स्वतन्त्र रूप से अध्ययन करने ये लगे। इन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी तथा बांग्ला का गम्भीर अध्ययन किया। उपनिषद्, दर्शन तथा आध्यात्मिक साहित्य की ओर भी इनकी रुचि रही। संगीत से इन्हें पर्याप्त प्रेम था। सन् 1950 ई० में ये ऑल इण्डिया रेडियो के परामर्शदाता पद पर नियुक्त हुए और सन् 1957 ई० तक इससे सम्बद्ध रहे। इन्हें 'कला और बूढ़ा चाँद' नामक काव्य-ग्रन्थ पर 'साहित्य अकादमी पुरस्कार', 'लोकायतन' पर 'सोवियत भूमि पुरस्कार' और 'चिदम्बरा' पर 'भारतीय ज्ञनपीठ पुरस्कार' मिला। भारत सरकार ने पन्त जी को 'पद्मभूषण' की उपाधि से विभूषित किया। पन्त जी 28 दिसम्बर, 1977 ई० को परलोकवासी हो. गये।

कृतियां

पन्त जी ने अनेक काव्यग्रन्थ लिखे हैं। कविताओं के अतिरिक्त इन्होंने कहानियाँ, उपन्यास और नाटक भी लिखे हैं, किन्तु कवि रूप में ये अधिक प्रसिद्ध हैं। पन्त जी के कवि रूप के विकास के तीन सोपान हैं-

  • छायावाद और मानवतावाद
  • प्रगतिवाद या मार्क्सवाद तथा 
  • नवचेतनावाद

1. पन्त जी के विकास के प्रथम सोपान (जिसमें छायावादी प्रवृत्ति प्रमुख थी) की सूचक रचनाएँ हैं-

  • वीणा
  • ग्रन्थि
  • पल्लव और 
  • गुंजन।

'वीणा' में प्राकृतिक सौन्दर्य के प्रति कवि का अनन्य अनुराग व्यक्त हुआ है। 'ग्रन्थि' से वह प्रेम की भूमिका में प्रवेश करता है और नारी-सौन्दर्य उसे आकृष्ट करने लगता है। 'पल्लव' छायावादी पन्त का चरमबिन्दु है। अब तक कवि अपने ही सुख-दुःख में केन्द्रित था, किन्तु 'गुंजन' से वह अपने में ही केन्द्रित न रहकर विस्तृत मानव-जीवन (मानवतावाद) की ओर उन्मुख होता है।

2. द्वितीय सोपान के अन्तर्गत तीन रचनाएँ आती हैं-

  • युगान्त
  • युगवाणी और 
  • ग्राम्या। 

इस काल में कवि पहले 'गांधीवाद' और बाद में ‘मार्क्सवाद' से प्रभावित होकर फिर प्रगतिवादी बन जाता है।

3. मार्क्सवाद की भौतिक स्थूलता पन्त जी के मूल संस्कारी कोमल स्वभाव के विपरीत थी। इस कारण तृतीय सोपान में वे पुन: अन्तर्जगत् की ओर मुड़े। इस काल की प्रमुख रचनाएँ हैं- 

  • स्वर्णकिरण
  • स्वर्णधूलि
  • उत्तरा
  • अतिमा
  • कला और बूढ़ा चाँद
  • लोकायतन
  • किरण
  • पतझर - एक भाव क्रान्ति और गीतहंस। 

इस काल में कवि पहले विवेकानन्द और रामतीर्थ से तथा बाद में अरविन्द-दर्शन से प्रभावित होता है। सन् 1955 ई० के बाद की पन्त जी की कुछ रचनाओं (कौए, मेंढक आदि) पर प्रयोगवादी कविता का प्रभाव है, पर कवि का यह रूप भी सहज न होने से वह इसे भी छोड़कर अपने प्राकृत (वास्तविक) रूप पर लौट आया।

साहित्यिक सेवाएँ

पन्त जी गम्भीर विचारक, उत्कृष्ट कवि और मानवता के प्रति आस्थावान एक ऐसे सहज कुशल शिल्पी थे, जिन्होंने नवीन सृष्टि के अभ्युदय के नवस्वप्नों की सर्जना की। इन्होंने सौन्दर्य को व्यापक अर्थ में ग्रहण किया है, इसीलिए इन्हें सौन्दर्य का कवि भी कहा जाता है।

साहित्य में स्थान

पन्त जी निर्विवाद रूप से एक सजग प्रतिभाशाली कलाकार थे। इनकी काव्य-साधना सतत विकासोन्मुखी रही है। ये अपने काव्य के बाह्य और आन्तरिक दोनों पक्षों को सँवारने में सदैव सचेष्ट रहे हैं। प्रकृति के सर्वाधिक सशक्त चितेरे के रूप में आधुनिक हिन्दी-काव्य में ये सर्वोपरि हैं। पन्त जी निश्चित ही हिन्दी-कविता के शृंगार हैं, जिन्हें पाकर माँ भारती कृतार्थ हुई है।

Post a Comment

0 Comments