Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi, रामधारी सिंह 'दिनकर' जी का जीवन परिचय

भारत के इतिहास में अनेक महान लेखक एवं कवि हुए हैं, उनमें से एक थे रामधारी सिंह 'दिनकर' राष्ट्रकवि दिनकर आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। इनकी विशेष रचनाओं को देखते हुए इन्हें साहित्य अकादमी, पदम भूषण और ज्ञानपीठ पुरस्कार द्वारा पुरस्कृत भी किया गया था।

Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi, रामधारी सिंह 'दिनकर' जी का जीवन परिचय
Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi

रामधारी सिंह 'दिनकर' जी का संक्षिप्त जीवन परिचय

पूरा नाम रामधारी सिंह 'दिनकर'
जन्म 23 सितंबर, 1908 ई.
जन्म स्थान सिमरिया, बेगूसराय, बिहार, भारत
मृत्यु 24 अप्रैल 1974 ई.
मृत्यु स्थान मद्रास, तमिलनाडु, भारत
कर्मभूमि बिहार, दिल्ली आदि।
मुख्य रचनाएं कलम आज उनकी जय बोल, हुंकार, इतिहास के आंसू, उर्वशी आदि।
विषय कविता, अनुवाद, खंडकाव्य
भाषा हिंदी, संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी और उर्दू
नागरिकता भारतीय
लेखन शैली विचार प्रधान, व्याख्यात्मक, भावनात्मक आदि।
उपाधि डी० लिट्०, पदम विभूषण, साहित्य चूड़ामणि
प्रसिद्धि लेखक, कवि तथा निबंधकार
पुरस्कार साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मभूषण, ज्ञानपीठ पुरस्कार द्वारा सम्मानित

रामधारी सिंह 'दिनकर' जी का जीवन परिचय

जीवन परिचय

श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' का जन्म 30 सितम्बर, 1908 ई० (संवत् 1965 वि०) को जिला बेगूसराय (बिहार) के सिमरिया नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह और माता का नाम श्रीमती मनरूप देवी था। इनकी दो वर्ष की अवस्था में ही पिता का देहावसान हो गया, अत: बड़े भाई वसन्त सिंह और माता की छत्रछाया में ही ये बड़े हुए। इनकी आरम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही हुई। अपने विद्यार्थी जीवन से ही इन्हें आर्थिक कष्ट झेलने पड़े। इन्होंने मैट्रिक (हाईस्कूल) की परीक्षा मोकामा घाट स्थित रेलवे हाईस्कूल से उत्तीर्ण की और हिन्दी में सर्वाधिक अंक प्राप्त करके 'भूदेव' स्वर्णपदक जीता। 1932 ई० में पटना से इन्होंने बी०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। ग्रामीण परम्पराओं के कारण 'दिनकर' जी का विवाह किशोरावस्था में ही हो गया। अपने पारिवारिक दायित्वों के प्रति दिनकर जी जीवन भर सचेत रहे और इसी कारण इन्हें कई प्रकार की नौकरी करनी पड़ी।

सन् 1932 ई० में बी०ए० करने के बाद ये एक नये स्कूल में अध्यापक बने। सन् 1934 ई० में इस पद को छोड़कर सीतामढ़ी में सब-रजिस्ट्रार बने। सन् 1950 ई० में बिहार सरकार ने इन्हें मुजफ्फरपुर के स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिन्दी-विभागाध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया। सन् 1952 ई० से सन् 1963 ई० तक ये राज्यसभा के सदस्य मनोनीत किये गये। इन्हें केन्द्रीय सरकार की हिन्दी-समिति का परामर्शदाता भी बनाया गया। सन् 1964 ई० में ये भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति बने।

दिनकर जी को कवि-रूप में पर्याप्त सम्मान मिला। ‘पद्मभूषण' की उपाधि, 'साहित्य अकादमी' पुरस्कार, द्विवेदी पदक, डी० लिट्० की मानद उपाधि, राज्यसभा की सदस्यता आदि इनके कृतित्व की राष्ट्र द्वारा स्वीकृति के प्रमाण हैं। सन् 1972 ई० में इन्हें 'उर्वशी' के लिए 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया। इनका स्वर्गवास 24 अप्रैल, 1974 ई० (संवत् 2031 वि०) को मद्रास (चेन्नई) में हुआ।

साहित्यिक सेवाएँ

'दिनकर' जी की सबसे प्रमुख विशेषता उनकी परिवर्तनकारी सोच रही है। उनकी कविता का उद्भव छायावाद युग में हुआ और वह प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता आदि के युगों से होकर गुजरी। इस दीर्घकाल में जो आरम्भ से अन्त तक उनके काव्य में रही, वह है उनका राष्ट्रीय स्वर । 'दिनकर' जी राष्ट्रीय भावनाओं के ओजस्वी गायक रहे हैं। इन्होंने देशानुराग की भावना से ओत-प्रोत, पीड़ितों के प्रति सहानुभूति की भावना से परिपूर्ण तथा क्रान्ति की भावना जगाने वाली रचनाएँ लिखी हैं। ये लोक के प्रति निष्ठावान, सामाजिक दायित्व के प्रति सजग तथा जनसाधारण के प्रति समर्पित कवि रहे हैं।

कृतियाँ

'दिनकर' जी का साहित्य विपुल है, जिसमें काव्य के अतिरिक्त विविध-विषयक गद्य-रचनाएँ भी हैं। इनकी प्रमुख काव्य-रचनाएँ-

  • रेणुका
  • हुंकार
  • कुरुक्षेत्र तथा
  • उर्वशी हैं।

इनके अतिरिक्त दिनकर जी के अन्य काव्यग्रन्थ निम्नलिखित हैं

1. खण्डकाव्य- रश्मिरथी

2. कविता-संग्रह

  • रसवन्ती
  • द्वन्द्वगीत
  • सामधेनी
  • बापू
  • इतिहास के आँसू
  • धूप और धुआँ
  • नीम के पत्ते
  • नीलकुसुम
  • चक्रवाल
  • कविश्री
  • सीपी और शंख
  • परशुराम की प्रतीक्षा
  • स्मृति-तिलक
  • हारे को हरिनाम आदि

3. बाल-साहित्य

  • धूप-छाँह
  • मिर्च का मजा
  • सूरज का ब्याह

साहित्य में स्थान

दिनकर जी की सबसे बड़ी विशेषता है, उनका समय के साथ निरन्तर गतिशील रहना। यह उनके क्रान्तिकारी व्यक्तित्व और ज्वलन्त प्रतिभा का परिचायक है। फलत: गुप्त जी के बाद ये ही राष्ट्रकवि पद के सच्चे अधिकारी बने और इन्हें 'युग-चरण', 'राष्ट्रीय-चेतना का वैतालिक' और 'जन-जागरण का अग्रदूत' जैसे विशेषणों से विभूषित किया गया। ये हिन्दी के गौरव हैं, जिन्हें पाकर सचमुच हिन्दी कविता धन्य हुई।

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