भारत के इतिहास में अनेक महान लेखक हुए हैं, उनमें से एक थे मैथिलीशरण गुप्त। इनकी विशेष रचनाओं को देखते हुए इन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक द्वारा सम्मानित भी किया गया था।
Maithili Sharan Gupt Biography in Hind |
मैथिलीशरण गुप्त जी का संक्षिप्त जीवन परिचय
पूरा नाम | मैथिलीशरण गुप्त | |||
जन्म | 3 अगस्त, 1886 ई. | |||
जन्म स्थान | चिरगाँव (जिला झाँसी), उत्तर प्रदेश, भारत | |||
मृत्यु | 12 दिसम्बर, 1964 ई. | |||
मृत्यु स्थान | उत्तर प्रदेश | |||
कर्मभूमि | उत्तर प्रदेश | |||
मुख्य रचनाएं |
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विषय | अनूदित तथा मौलिक | |||
भाषा | हिंदी | |||
नागरिकता | भारतीय | |||
लेखन शैली | विचार प्रधान, व्याख्यात्मक, भावनात्मक आदि। | |||
उपाधि | पद्मभूषण | |||
प्रसिद्धि | लेखक तथा कवि | |||
पुरस्कार | पद्मभूषण(1954) तथा मंगलाप्रसाद पारितोषिक द्वारा सम्मानित |
मैथिलीशरण गुप्त जी जीवन परिचय
जीवन परिचय
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म (सन् 1886 ई०) में, चिरगाँव (जिला झाँसी) में हुआ था। इनके पिता का नाम सेठ रामचरण गुप्त था। सेठ रामचरण गुप्त स्वयं एक अच्छे कवि थे। गुप्त जी पर अपने पिता का पूर्ण प्रभाव पड़ा। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी से भी इन्हें बहुत प्रेरणा मिली। ये द्विवेदी जी को अपना गुरु मानते थे। गुप्त जी को प्रारम्भ में अंग्रेजी पढ़ने के लिए झाँसी भेजा गया, किन्तु वहाँ इनका मन न लगा; अत: घर पर ही इनकी शिक्षा का प्रबन्ध किया गया, जहाँ इन्होंने अंग्रेजी, संस्कृत और हिन्दी का अध्ययन किया। गुप्त जी बड़े ही विनम्र, हँसमुख और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। इनके काव्य में भारतीय संस्कृति का प्रेरणाप्रद चित्रण हुआ है। इन्होंने अपनी कविताओं द्वारा राष्ट्र में जागृति तो उत्पन्न की ही, साथ ही सक्रिय रूप से असहयोग आन्दोलनों में भी भाग लेते रहे, जिसके फलस्वरूप इन्हें जेल भी जाना पड़ा। 'साकेत' महाकाव्य पर इन्हें हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन, प्रयाग से मंगलाप्रसाद पारितोषिक भी मिला। भारत सरकार ने गुप्त जी को इनकी साहित्य-सेवा के लिए पद्मभूषण से सम्मानित किया और राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया। जीवन के अन्तिम क्षणों तक ये निरन्तर साहित्य-सृजन करते रहे। 12 दिसम्बर, 1964 ई० (संवत् 2021 वि०) को माँ-भारती का यह महान् साधक पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया।
साहित्यिक सेवाएँ
गुप्त जी का झुकाव गीतिकाव्य की ओर था और राष्ट्रप्रेम इनकी कविता का प्रमुख स्वर रहा। इनके काव्य में भारतीय संस्कृति का प्रेरणाप्रद चित्रण हुआ है। इन्होंने अपनी कविताओं द्वारा राष्ट्र में जागृति तो उत्पन्न की ही, साथ ही सक्रिय रूप से असहयोग आन्दोलनों में भी भाग लेते रहे, जिसके फलस्वरूप इन्हें जेल भी जाना पड़ा। 'साकेत' महाकाव्य पर इन्हें हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से मंगलाप्रसाद पारितोषिक भी मिला। भारत सरकार ने गुप्त जी को इनकी साहित्य-सेवा के लिए पद्मभूषण से सम्मानित किया और राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया।
कृतियां
- अनूदित तथा
- मौलिक
- साकेत- यह उत्कृष्ट महाकाव्य है, जो 'श्रीरामचरितमानस' के बाद राम-काव्य का प्रमुख स्तम्भ है।
- भारत-भारती- इसमें भारत की दिव्य संस्कृति और गौरव का गान किया गया है।
- यशोधरा- इसमें बुद्ध की पत्नी यशोधरा के चरित्र को उजागर किया गया है।
- द्वापर, जयभारत, विष्णुप्रिया- इनमें हिन्दू संस्कृति के प्रमुख पात्रों के चरित्र का पुनरावलोकन कर कवि ने अपनी पुनर्निर्माण कला उत्कृष्ट रूप में प्रदर्शित की है।
- रंग में भंग
- जयद्रथ वध
- किसान
- पंचवटी
- हिन्दू
- सैरिन्ध्री
- सिद्धराज
- नहुष
- हिडिम्बा
- त्रिपथगा
- काबा और कर्बला
- गुरुकुल
- वैतालिक
- मंगल घट
- अजित
- 'अनघ', 'तिलोत्तमा'. 'चन्द्रहास' नामक तीन छोटे-छोटे पद्यबद्ध रूपक भी इन्होंने लिखे हैं।
भाषा शैली
हिन्दी साहित्य में स्थान
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त आधुनिक हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि रहे हैं। खड़ी बोली को काव्य के साँचे में ढालकर परिष्कृत करने का जो असाधारण कौशल इन्होंने दिखाया, वह अविस्मरणीय रहेगा। इन्होंने राष्ट्र को जगाया और उसकी चेतना को वाणी दी है। ये भारतीय संस्कृति के यशस्वी उद्गाता एवं परम वैष्णव होते हुए भी विश्वबन्धुत्व की भावना से ओत-प्रोत थे। ये सच्चे अर्थों में इस राष्ट्र के महनीय मूल्यों के प्रतीक और आधुनिक भारत के सच्चे राष्ट्रकवि थे।
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