भारत के इतिहास में अनेक महान कवि और साहित्यकार हुए हैं, उनमें से एक थे वासुदेव शरण अग्रवाल। यह भारत के इतिहास, साहित्य कला, संस्कृति आदि विषयों के ज्ञाता थे। इनकी विशेष रचनाओं को देखते हुए इन्हें साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत भी किया गया था।
Vasudev Sharan Agrawal Biography in Hindi |
वासुदेव शरण अग्रवाल जी का संक्षिप्त जीवन परिचय
पूरा नाम | वासुदेव शरण अग्रवाल |
जन्म | 7 अगस्त, 1904 ई. |
जन्म स्थान | खेड़ा, मेरठ, उत्तर प्रदेश, भारत |
मृत्यु | 26 जुलाई, 1967 ई. |
मृत्यु स्थान | उत्तर प्रदेश |
कर्मभूमि | उत्तर प्रदेश, |
मुख्य रचनाएं | मलिक मोहम्मद जायसी - पद्मावत (समीक्षात्मक ग्रंथ), पाणिनिकालीन भारतवर्ष, मेघदूत- एक अध्ययन आदि। |
विषय | निबंध, शोध ग्रंथ, समीक्षात्मक ग्रंथ, सांस्कृतिक ग्रंथ आदि। |
भाषा | हिंदी |
नागरिकता | भारतीय |
लेखन शैली | विचार प्रधान, व्याख्यात्मक, भावनात्मक आदि। |
उपाधि | पी.एच.डी. और डि.लिट. |
प्रसिद्धि | लेखक तथा विद्वान |
विशेष योगदान | राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना में अहम योगदान |
पुरस्कार | साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित |
डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल जी जीवन परिचय
जीवन परिचय
हिंदी के प्रसिद्ध गद्य रचनाकार डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल जी का जन्म 7 अगस्त 1904 ई. को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित खेड़ा नामक ग्राम में हुआ था।
वासुदेव शरण अग्रवाल जी का बचपन लखनऊ में व्यतीत हुआ, लखनऊ में ही अपने माता-पिता के साथ रह कर इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद इन्होंने अपनी स्नातक की शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय से प्राप्त की, तत्पश्चात् एम.ए.(M.A.), पी.एच.डी.(P.hd.) तथा डी.लिट् की उपाधियां लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राप्त की।
अपनी पी.एच.डी.(P.hd.) के दौरान किए गए पाणिनिकालीन भारत नामक शोध प्रबंध के कारण यह विद्वानों के बीच काफी चर्चित रहे। अपनी उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने मथुरा पुरातत्व संग्रहालय भारतीय और पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्य किया।
सन 1959 ईसवी अग्रवाल जी काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ इंडोलॉजी में प्रोफेसर नियुक्त हुए। वासुदेव शरण अग्रवाल जी समय-समय पर भारतीय मुद्रा परिषद (नागपुर), भारतीय संग्रहालय परिषद (पटना) तथा ऑल इंडिया ओरिएंटल कांग्रेस, फाइन आर्ट सेक्शन (बंबई) आदि संस्थाओं के सभापति भी रहे। इनकी विशेष रचनाओं के कारण इन्हें साहित्य अकादमी द्वारा भी पुरस्कृत किया गया।
1967 ई. में हिंदी के इस महान विद्वान का 62 वर्ष की आयु में स्वास्थ्य खराब होने के कारण मृत्यु हो गई।
कृतियां
- भारत की एकता
- मातृभूमि
- पृथ्वीपुत्र
- कल्पलता
- कल्पवृक्ष
- वाग्धारा
- कला और संस्कृति
- वेद विद्या
- पूर्णज्योति
- पाणिनिकाल भारत/नविनकालिन भारत
- कालिदास कृत मेघदूत की संजिवनी व्याख्या
- मलिक मोहम्मद जायसी कृत पद्मावत
- भारत की मौलिक एकता
- हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन
भाषा शैली
- डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल जी की भाषा शुद्ध एवं परिनिष्ठित हिन्दी है, जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की बहुलता है।
- मुहावरे और लोकोक्तियां इनकी भाषा मे देखने को नही मिलती।
- भारतीय शब्दों का प्रयोग तो इनकी भाषा में दिखाई तो देता है परन्तु उर्दू - अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग नही देखने को मिलती।
- विषय के अनुरूप इनकी भाषा का स्वरूप बदलता रहता है। कई निबन्धो में गहन गंभीर भाषा का प्रयोग है तो कई में सरल, सहज, व्यावहारिक का रुप दिखाई देता है।
- सामान्यतः अग्रवाल जी की भाषा प्रौढ़ संस्कृतनिष्ठ, परिमार्जित साहित्यिक हिन्दी है जिसमें विषय के अनुरूप गम्भीरता विद्यमान है तथा उसमें भाव प्रकाशन की अद्भुत क्षमता है।
हिन्दी साहित्य में स्थान
डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल जी हिंदी साहित्य क्षेत्र में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं ये अपनी उत्कृष्ट निबंधों के लिए जाने जाते हैं। पुरातत्व व अनुसंधान के क्षेत्र, उनकी समता कर पाना अत्यंत कठीन है पुरातत्व सम्बन्धी उपलब्धियों से सम्पन्न कर इन्होंने हिन्दी जगत की महत्वपूर्ण सेवा की।
अपनी विवेचना पद्धति की मौलिकता एवं विचारशीलता के कारण वे सदैव स्मरणीय रहेंगे।
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